घुंघरुओं से जुड़ी जीवन की डोर

 


आमतौर पर घुंघरू को पावों में बांध कर नृत्य करने का साज मान लिया जाता है लेकिन अगर इनके विविध पहलुओं पर नजर डालें तो इनमें मानवीय जीवन के तमाम पहलू जुड़े हुए हैं।

घुंघरुओं को ऐसे ही नजरिए से देखा है ग्वालियर के युवा चित्रकार मनीष चंदेरिया ने। उन्होंने इनके जीवन के हर रंग को देखा है। आशा-निराशा, खुशी-गम और भी न जाने क्या-क्या..। इनमें रंगों का समिश्रण बला की खूबसूरती ला देता है।

एसजी ठाकर सिंह आर्ट गैलरी में इंडियन अकादमी आफ फाइन आर्ट्स की ओर से 3 अक्तूबर से लगाई गई सामूहिक प्रदर्शनी में चर्चा का विषय बने चंदेरिया के चित्रों की संख्या तो मात्र छह है लेकिन इनमें सारे समाज का चिंतन और मनन समाया हुआ है।

एक चित्र में अकेले घुंघरू को बना कर इंसान के चिंतन की मुद्रा को दर्शाने की कोशिश की गई है। दूसरे चित्र में उन्होंने एक नृत्यकी के जोश को उकेरा है। चित्रों में स्पष्ट होता है कि जब नृत्यक जोश में नृत्य करता है तो उसका रिदम कैसा होता है। उसके जोश में लय तो बनती ही है लेकिन कुछ घुंघरू टूटते भी हैं। इस बिखराव को उन्होंने धारा से अलग हट कर जीने वाले इंसान के अकेलेपन और बेबसी को दर्शाया है।

बिखरे घंघरुओं की ताजगी अहसास दिलाती है कि अगर उनको दोबारा पिरो दिया जाए तो वह फिर से संगीतमय हो उठेंगे। अर्थात मुख्यधारा में लौटने के बाद इंसानी जिंदगी भी दोबारा महक उठती है। लाल रंगों के जरिए उन्होंने जिंदगी के आवेग और जोश के क्षणों को प्रदर्शित किया है। इसी तरह से अन्य चित्रों में उन्होंने घुंघरुओं के जरिए प्रेम-परिणय और अध्यात्म को भी बखूबी उकेरा है। जिंदगी का फलसफा उसमें नजर आता है।

रंगों से मिलती है प्रेरणा

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