अमिताभ बच्चन, सिनेमा और रंगमंच
बंगाल के प्रसिद्ध फिल्मकार रितुपर्णो घोष की अमिताभ बच्चन और प्रिटी जिंटा अभिनीत फिल्म ‘द लास्ट लीयर’ अंग्रेजी भाषा में बनाई गई है। यह फिल्म उत्पल दत्त के नाटक ‘आजकेर शाहजहां’ से प्रेरित है। मराठी भाषा में भी दशकों पूर्व इस तरह का नाटक लिखा गया है, शायद उसका नाम ‘नट सम्राट’ था। दरअसल पांचवें दशक के अंत में हेनरी डेन्कर का उपन्यास ‘द डायरेक्टर’ प्रकाशित हुआ था। यह संभव है कि इस तरह के सारे प्रयासों की गंगोत्री वही उपन्यास है। सारांश यह है कि प्रेरणा न केवल मुंबई के निर्देशक लेते हैं, वरन इस खेल में सभी शामिल हैं और वो भी जिनकी नाक पर इंटेलेक्चुअल चश्मा चढ़ा है।
हेनरी डेन्कर के उपन्यास में एक युवा प्रतिभाशाली फिल्मकार से एक मंजा हुआ पूंजी निवेशक कहता है कि असमय सेवानिवृत्त सुपर सितारे को राजी कर सको, तो असीमित धन उपलब्ध है। युवा निर्देशक बड़ी मुश्किल से नायक-नायिका को अनुबंधित करता है और लोकेशन पर बुजुर्ग तकनीशियनों का आदर पाने के लिए अपनी जान खतरे में डालकर भागते हुए घोड़ों के बीच एक दृश्य फिल्माता है। शूटिंग के साथ-साथ एक त्रिकोणात्मक प्रेमकथा भी पनपती है। निर्देशक सेक्स सिंबल नायिका को चाहता है, जो अधेड़ नायक में अपनी भावना का केंद्र खोज लेती है। ईष्र्या का मारा निर्देशक फिल्म के भीतर फिल्म के एक्शन क्लाइमैक्स को इस ढंग से फिल्माता है कि अधेड़ नायक आखिरी शॉट देते हुए मर जाता है। कातिल निर्देशक नायक के मरणोपरांत उसके सारे पुरस्कार लेने जाता है।
बहरहाल, रितुपर्णा घोष ने इस कथा के मोटे रूप में अपनी थीम यह ली है कि नायक रंगमंच को श्रेष्ठ समझता है और निर्देशक सिनेमा की शक्ति पूजा करता है। फिल्म के अंत में अमिताभ बच्चन का संवाद है, ‘अभिनेता बनता है हृदय में अभिव्यक्त करने की तीव्रतम इच्छा के कारण।’ रंगमंच और सिनेमा में अभिनय की शैलियां अलग-अलग होती हैं। सिनेमा में निर्देशक का महत्व रंगमंच से अधिक है, जहां अभिनेता ही माध्यम होता है।
कुशल फिल्म निर्देशक और संपादक एक कम प्रतिभाशाली अभिनेता से श्रेष्ठ काम करा लेते हैं, परंतु रंगमंच पर अभिनेता के पास कोई बैसाखी नहीं होती। यह एक विवाद का विषय है कि सिनेमा के अभिनेता को सिनेमा की तकनीक का ज्ञान होना चाहिए। अधिक ज्ञान उसकी स्वाभाविकता को मार सकता है। कामचलाऊ ज्ञान होने पर वह ज्ञानी ध्यानी निर्देशक के हाथ में आज्ञाकारी कठपुतली होता है। फिल्म व्याकरण के आधारभूत तत्व एक-दूसरे से गुंथे हुए व सापेक्ष हैं और कोई भी भाग पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है। रंगमंच के कलाकार के पास सीमित स्पेस (जगह), परंतु असीमित स्वतंत्रता है। सिनेमा के कलाकार को क्लोजअप का लाभ मिलता है। नाटक में शब्दों के पीछे छिपे अर्थ को सक्षम रंगकर्मी ही बखूबी प्रस्तुत कर सकता है, जबकि सिनेमा में इस तरह के अर्थ को उजागर करने के लिए निर्देशक के पास प्रतीक इत्यादि अनेक सहारे हैं। रंगमंच के कलाकार को दर्शक से सीधे संवाद का लाभ प्राप्त है, जबकि सिने कलाकार के काम पर दूरदराज के सिनेमाघरों में तालियां पड़ती हैं, जहां वह कभी नहीं जाता।
रंगमंच के कलाकार प्रशंसा के मामले में तुरंत भुगतान प्राप्त करते हैं, जबकि सिनेमा के कलाकार को आगामी तिथि का चेक मिलता है। नाटक आज नगद कल उधार है, जबकि सिनेमा हुंडी या प्रॉमिसरी नोट है। खबर है कि ‘द लास्ट लीयर’ अमिताभ बच्चन की श्रेष्ठतम कोशिश है। ज्ञातव्य है कि शेक्सपीयर का दुखांत नाटक ‘किंग लीअर’ एक बीमार बूढ़े राजा की कहानी है। राजा अपनी अच्छी पुत्री की बेबाक आलोचना से दुखी होकर उसे अपनी संपत्ति से खारिज करते हुए चाटुकार बेटियों को संपत्ति देता है, जो सत्ता में आते ही पिता के साथ निर्मम व्यवहार करती हैं। ‘द लास्ट लीयर’ में अमिताभ को रंगमंच के भक्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ज्ञातव्य है कि अमिताभ ने छात्र जीवन में नैनीताल के शेरवुड स्कूल में मंच पर शेक्सपीयर के नाटक में अभिनय किया था और उन्हें ज्योफ्रे केंडल पुरस्कार मिला था।
ज्ञातव्य है कि शशि कपूर के ससुर ज्योफ्रे केंडल ताउम्र स्कूलों में शेक्सपीयर खेलते रहे। उम्र के इस पड़ाव पर अमिताभ को ‘द लास्ट लीयर’ करते हुए शेरवुड के दिन याद आए होंगे।
Comments
Post a Comment